Monday, January 7, 2008

syah panne

हर खामोशी में कोई बात छुपी होती है ,
चमकीले दिनों में भी अन्दर कोई रात छुपी होती है |
ज़िन्दगी इतनी भी ख़ुशी कि सौगात नहीं है ,
गौर से सुन ज़रा अन्दर घुटती आवाज़ छुपी है |
मुस्कुराहटों को सजाया है मैंने होठों पर मगर
साथ नहीं देती आँखें जिसमे आँसू भरी हालात छुपी है |
रंगीन महफिलों से दोस्ती कि बहुत बहुत कोशिश तो की ,
दिल के एक कोने में वो ही ज़मात बैठी है |
अकेला मैं रह तो गया हूँ बहुत पीछे ,
शायद लौटेगा कोई इसकी आस छुपी है |